लक्षचंडी यज्ञ एवं पाठ
लक्षचंडी यज्ञ और पाठ एक बहुत ही अद्वितीय यज्ञोपवीत संस्कार है जिसमें शक्तिशाली सप्तशती मंत्र शामिल हैं और इसमें दुर्गा सप्तशती पाठ के 1 लाख पाठ शामिल हैं। यह पूजा अनुष्ठान बहुत ही दुर्लभ और अद्वितीय है। इस पूजा और यज्ञ में एक महान गुण होता है जो दिव्य देवी से असीम आशीर्वाद दिलाता है। सभी क्षेत्रों में अपार ऊर्जा, नाम, प्रसिद्धि, शक्ति, विजय, स्वास्थ्य और सफलता पाने के लिए दुर्गा सप्तशती का जप करना लाभदायक होता है। यह मानसिक शक्ति को बढ़ाता है और व्यक्ति को भौतिक समृद्धि प्राप्त करने में मदद करता है।
दिव्य माँ से अपार आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, लक्ष चंडी पाठ और यज्ञ कर सकते हैं। इस पूजा को अनुष्ठान करने से ऋणों से मुक्ति मिलती है और सभी प्रकार के दुर्भाग्य और संकटों (पीड़ा) से मुक्ति प्राप्त होती है। यह उपासक को सफलता, अधिकार और शक्ति प्रदान करता है और जीवन में आने वाले सभी बुरे विचारो और बुरी शक्तियों का नाश करता है। दुर्गा सप्तशती पाठ के लक्षचंडी स्तोत्र का जप करने से आध्यात्मिकता बढ़ती है, सकारात्मक ऊर्जा जागृत होती है और मोक्ष का मार्ग खुलता है।
इस यज्ञ के साथ हम समाज में समानता के संदेश के साथ, प्रेम और भाईचारा फैलाने का हमारा उद्देश्य है |
लक्षचंडी स्तोत्र जप करने से आध्यात्मिकता बढ़ती है, सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है, और मोक्ष का मार्ग खुलता है। यह उपासक को सफलता, स्वास्थ्य और शक्ति प्रदान करता है| यह यज्ञ व्यावहारिक जीवन में सकारात्मकता भी लाता है और कार्य कुशलता बढ़ाता है। एवं आध्यात्मिक वातावरण और ईश्वर में विश्वास बढ़ाता है ।
सुखदेव भक्ति परिवार ने बीते वर्ष मई २०२१ में लक्ष्यचंडी पाठ का संकल्प लिया था, जिसमे १ लाख सप्तसती पाठों का जाप किया जाता है। इस संकल्प को वेसुखदेव भक्ति परिवार ने अप्रैल २०२२ में १०८ विप्रजनों के सानिध्य एवं माँ दुर्गा के आशीर्वाद से पूरे विधि-विधान के साथ सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया है। जिसकी पूर्ण आहुति का आयोजन सुखदेव भक्ति संस्थान के प्रांगड़ बिजलपुर धाम में स्थित माँ दुर्गा के मंदिर में १६ अप्रैल से १६ मई २०२२ को किया जा रहा है जिसमे आप सभी श्रद्धालुजन सादर आमंत्रित है। कृपया पधारकर धर्म लाभ अर्जित करे।
लक्षचंडी यज्ञ: महत्व, लाभ और विधि:
लक्षचंडी यज्ञ एक प्राचीन हवन प्रक्रिया है जो सनातन धर्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह यज्ञ लक्ष्मी माता की कृपा प्राप्ति, धन, समृद्धि, और सम्पत्ति के लिए किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य धन की वृद्धि, व्यापार में सफलता, और प्रसन्नता की प्राप्ति होती है।
लक्षचंडी यज्ञ की विधि और उपयोग:
- यज्ञ की आरंभिक चरण में, यजमान को लक्ष्मी माता की प्रतिमा या चित्र को अग्नि के सम्मुख स्थापित करना चाहिए।
- अग्नि को प्रज्वलित करके, यजमान को लक्ष्मी माता की पूजा करनी चाहिए और मंत्रों का जाप करना चाहिए।
- यज्ञ के अंत में, यजमान को हवन की सामग्री अग्नि में डालनी चाहिए और ध्यान और प्राणायाम की प्रक्रिया को समाप्त करना चाहिए।
लक्षचंडी यज्ञ के लाभ:
- यह यज्ञ लक्ष्मी माता की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है जिससे धन और समृद्धि में वृद्धि होती है।
- इस यज्ञ का अनुष्ठान करने से व्यापार में बढ़ोतरी होती है और व्यापारिक सफलता प्राप्त होती है।
- लक्षचंडी यज्ञ से ऋण, कर्जदारी, और आर्थिक संकटों का निवारण होता है।
- इस यज्ञ का अनुसरण करने से परिवार में धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
लक्षचंडी यज्ञ के अद्भुत लाभों को समझकर, यजमान को अपने जीवन में इसका अनुसरण करके धन, समृद्धि, और सुख की प्राप्ति में सफलता प्राप्त हो सकती है।
सुखदेव भक्ति का लक्षचंडी यज्ञ करने का उद्देश्य सुखदेव भक्ति में समानता, प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करना है तथा सुखदेव भक्ति में दृढ़ता और कार्य कुशलता में वृद्धि करना है और सुखदेव भक्ति परिवार की बाधाओं और परेशानियों को दूर करना है|
यज्ञ का प्रभाव सुसंस्कृत बना देता है। यज्ञ को पाप नाशक भी कहा गया है। आधुनिक विज्ञान के युग में आज भी यज्ञ और हवन की महत्ता को स्वीकारा जाता है। स्वाहा-स्वाहा और दैवीय मंत्रों की गूंज और यज्ञ के लिए बनाए गए हवन कुंड में दी जाने वाली आहुति का मनुष्य की भीतरी चेतना पर क्या प्रभाव पड़ता है|
सुखदेव भक्ति परिवार का वर्ष २०३५ तक ११ लक्षचंडी पाठ एवं यज्ञ पूर्ण करने का उद्देश्य है |
लक्षचंडी महायज्ञ पूर्ण आहुती
सुखदेव भक्ति के संस्थापक श्री सुखदेव गेहलोत जी ने विगत वर्ष मई २०२१ में लक्षचंडी पाठ अनुष्ठान आरम्भ किया था, लक्षचंडी पाठ में १ लाख सप्तशती पाठ होते है जो की अप्रैल २०२२ में पूर्ण हुआ, इस अनुष्ठान की पूर्णाहुति १६ अप्रैल २०२२ से १६ मई २०२२ तक है | पूर्णाहुति के लिए भव्य एवं विशाल यज्ञशाला का निर्माण सुखदेव भक्ति के प्रांगड़ में किया गया है| इसमें ३०० विद्वान् गुरुजन एवं पंडित द्वारा आहुति प्रदान की जा रही है | लक्षचंडी महायज्ञ पूर्णहुति विधि विधान से चल रहा है |
यज्ञ का समय रोजाना :
प्रथम प्रातः 7:00 से 9:30 | द्वितीय: 10:00 से 12 :30 | तृतीय: 1:00 से 3:30 | चतुर्थ: 4:00 से 6:30 | संध्या: 7:00 बजे महाआरती
आहुति
यज्ञ करते समय हवन या अग्नि यज्ञ करने की प्रथा है। अग्नि को औपचारिक रूप से जलाया जाता है, अग्नि, अग्नि देव को आमंत्रित करने का प्रतीक है। तत्पश्चात जब मंत्रों का जाप किया जाता है, तो मंत्र के अंत में घी या हवन सामग्री (जड़ी-बूटियों और घी का मिश्रण) के रूप में अर्पण किया जाता है।.
पाठ
धार्मिक ग्रंथो एवं मंत्रो का शुद्धता पूर्वक वाचन एवं उच्चारण करने को पाठ कहा जाता है| हिंदू धर्म में पाठ करना एक जरूरी प्रक्रिया मानी गई है। पाठ से जहां व्यक्ति को आत्मीय सुख और शांति प्राप्ति होती है वहीं इससे भगवान का आशीर्वाद भी मिलता है।.
यज्ञ
मत्स्यपुराण में कहा गया है कि जब पांच आवश्यक घटक - देवता, हवन द्रव्य या प्रसाद, वेद मंत्र, दैवीय नियम और ब्राह्मण को उपहार - होते हैं, तो यह एक यज्ञ है। विश्व कल्याण के लिए किया गया कोई भी शुभ कार्य यज्ञ है।.